अब महात्मा गांधी की सर्वधर्म प्रार्थना सभा पर भी मीन-मेख निकालने वाले निकल आए हैं. उन्हें लगता है कि ये भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर हमला है. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने यहां आगामी गांधी जयंती पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का आयोजन करें लेकिन जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस पर एतराज है.
मुफ्ती को तकलीफ इसलिए हो रही है क्योंकि सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में हिंदुओं के प्रिय भजन भी गाए जाएंगे. हालांकि नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि वे भी भजन गाते रहे हैं, तो क्या वे हिंदू हो गए.
मुफ्ती ने सोमवार को ट्विटर पर एक वीडियो डाला था, जिसमें स्कूल के शिक्षक छात्रों को महात्मा गांधी का प्रसिद्ध भजन ‘रघुपति राघव राजाराम’ गाने को कह रहे हैं. मुफ्ती ने इसे सरकार का वास्तविक ‘हिंदुत्व का एजेंडा’ बताया था.
मुफ्ती मानती हैं कि मुसलमान बच्चों को सर्वधर्म प्रार्थना सभा का हिस्सा बनाना ‘हमारे धर्म पर हमला है’. अब उन्हें कौन समझाए कि सर्वधर्म प्रार्थना सभा में किसी हिंदू धर्म ग्रंथ से ही प्रार्थना नहीं की जा जाती. उसमें भारत के अन्य सभी मजहबों की प्रार्थना भी शामिल होती है.
इस बीच, श्रीनगर से फोन पर कश्मीर मामलों के जानकार आसिफ सुहाफ कहते हैं कि महबूबा मुफ्ती के ट्वीट के बाद राज्य में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं को लेकर जनता को पता चला. उनके ट्वीट से पहले कोई मसला नहीं था. ये अब हिंदू बनाम मुस्लिम विवाद बन सकता है. हालांकि वे कहते हैं कि वैसे फारूक अब्दुल्ला तथा बहुत सारे कश्मीरी मुसलमान भजन गाते हैं. किसी को इससे कोई एतराज नहीं है.
बहरहाल, ये बात माननी पड़ेगी कि महबूबा मुफ्ती सर्वधर्म प्रार्थना सभा के विचार से भी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करने में पीछे नहीं हटीं. बस गनीमत इतनी है कि महबूबा के अलावा अन्य किसी सियासी नेता ने सर्व धर्म प्रार्थना के आयोजन पर सवाल खड़े नहीं किए.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने गांधी जयंती के लिए जारी एक निर्देश में स्कूलों से कहा है कि वे 6 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का आयोजन करें. इसमें रघुपति राघव राजा राम… तथा ईश्वर अल्लाह तेरो नाम… शामिल हैं. महबूबा मुफ्ती का कहना है कि हम गांधी जी का सम्मान करते हैं पर सरकार हमें गांधी जी के नाम पर हिंदू भजन गाने की जिद कर रही है.
यानी अब गांधी जी की सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी सांप्रदायिक हो गई है. सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सबसे पहले आयोजन करने का श्रेय गांधी जी को ही जाता है. वे जब राजधानी दिल्ली के वाल्मीकि मंदिर में 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 और फिर बिड़ला मंदिर में 30 जनवरी 1948 तक रहे तो उस दौरान सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं रोज होती थीं.
हालांकि, तब बहाई, यहूदी या पारसी धर्म की प्रार्थनाएं नहीं होती थीं. ये बाद में जोड़ी गईं. राजधानी में संसद भवन की नई बनने वाली इमारत के भूमि पूजन के बाद भी सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बौद्ध, यहूदी, पारसी, बहाई, सिख, ईसाई, जैन, मुस्लिम और हिंदू धर्मों की प्रार्थनाएं की गईं. इसकी शुरुआत हुई थी बुद्ध प्रार्थना से. उसके बाद बाइबल का पाठ किया गया.
सर्वधर्म प्रार्थना सभा में हरेक धर्म के प्रतिनिधि को 5 मिनट का वक्त मिलता है. बहाई धर्म की प्रार्थना को नीलाकशी रजखोवा ने पढ़ा. उनके बाद यहूदी धर्म की प्रार्थना हुई. यहूदी प्रार्थना के बाद जैन धर्म की प्रार्थना और उसके पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ हुआ और फिर कुरान की आयतें पढ़ीं गईं. ये जरूरी नहीं है कि सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेने वाले अपने धर्म के धार्मिक स्थान से ही जुड़े होंगे. वे अपने धर्म के विद्वान हो सकते हैं. सबसे अंत में गीता पाठ किया गया. तो यह है भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र.
महबूबा मुफ्ती कह रही हैं कि वह गांधी जी का सम्मान करती हैं, पर उनका सर्वधर्म प्रार्थना सभा को लेकर विरोध है. यह अपने आप में विरोधाभसी बयान है. कोई उन्हें समझाए कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह तो नहीं होता है कि कोई देश अपनी धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक आस्थाओं को छोड़ दें. यह तो असंभव सी बात है.
सर्वधर्म प्रार्थना सभा को कोसने वाली मुफ्ती को पता नहीं मालूम है या नहीं कि भारत के संविधान की मूल प्रति में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण की तस्वीर है. यही नहीं, भारत के संविधान की मूल प्रति पर शांति का उपदेश देते भगवान बुद्ध भी हैं. हिंदू धर्म के एक और अहम प्रतीक शतदल कमल भी संविधान की मूल प्रति पर हर जगह मौजूद हैं. सच में संविधान की मूल प्रति पर छपी राम, कृष्ण और नटराज की तस्वीरें यदि आज लगाई गई होती, तो इस कदम का महबूबा जैसे विद्वान सांप्रदायिक कहकर घोर विरोध कर रहे होते.
संविधान की मूल प्रति में मुगल बादशाह अकबर भी दिख रहे हैं और सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह भी वहां मौजूद हैं. मैसूर के सुल्तान टीपू और 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के चित्र भी संविधान की मूल प्रति पर उकेरे गए हैं. तो महबूबा मुफ्ती जान लें कि भारत का संविधान देश की समृद्ध संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का पूरा सम्मान करता है.
गांधी जी ने सर्वधर्म प्रार्थना सभा इसलिए शुरू करवाई थी ताकि भारत के सब लोग एक-दूसरे धर्मों को जान लें.
महात्मा गांधी की जयंती और शहीदी दिवस पर राजघाट और गांधी दर्शन (बिड़ला हाउस) से लेकर सारे देश के विभिन्न स्थानों पर होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का आयोजन अहिंसा के पुजारी की सर्वधर्म सम्भाव के विचार को आगे बढ़ाता है.
गांधी जी के जीवनकाल में भी सांप्रदायिक लोग अक्सर उनकी प्रार्थना सभाओं में उपद्रव किया करते थे. पर गांधी जी ने इन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया.
गांधी जी की 30 जनवरी 1948 को हत्या से एक दिन पहले महान गायिका एम.एस.सुब्बालक्ष्मी ने भी बापू के प्रिय भजन (कौन सा भजन) बिड़ला हाउस में गाया था. उस दिन नौजवान सुंदरलाल बहुगुणा भी वहां पर थे. उन्हें 30 जनवरी को भी प्रार्थना सभा में भाग लेना था पर वे किसी कारणवश उस मनहूस दिन वहां पर नहीं पहुंच सके थे. उन्हें इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि वे 30 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में नहीं थे. वे आगे चलकर प्रख्यात पर्यावरणविद्ध बने.
बहरहाल, गांधी जी की शुरू की गई सर्वधर्म प्रार्थना सभा तो होगी. भारत उससे दूर नहीं जा सकता. यह महबूबा मुफ्ती जान लें तो बेहतर रहेगा.
( साभार theprint)