ये धार्मिक प्रकरण ही है। इसे और किसी तरीक़े से नहीं देखा जा सकता।
इस्लामी आतंकवादियों ने श्रीनगर में हिंदू अध्यापकों को छाँट के अलग करके गोलियों से भून दिया। बंगाल में जो हिंदुओं के साथ घट रहा है वो सबको विदित है। मुसलमानों को प्रथिमकता दी जा रही है।
पलघर साधु हों, या लखीमपुर खेरी में मारे गए भाजपा कार्यकर्ता, उत्तर प्रदेश के बिकरु या ऊँचाहर का मसला हो जिसके बारे में शायद आपको पता भी ना हो, कश्मीरी पंडितों की तो खैर बात ही छोड़िए, हिंदू इस देश में प्रतारित है ये सोलह आने सच है।
आप बक़रीद की तुलना होली या दीपावली या ओणम या कँवरियों के साथ करके देख लाइन आप पाएँगे की मुसलमानों को इस देश में हिंदुओं के मुक़ाबले प्रथिमकता मिलती है।
एक पशु हत्या करें, हिंसा से वातावरण प्रदूषित हो, पर कानों में जूं तक नहीं रेंगती है, पर रंग और पटाके जान के लिए ख़तरा हैं। ओणम और कँवरियों से कोरोना फैल सकता है, पर शहीन बाग और किसानों के मोर्चे पे तो बाँछे खिल जाती हैं।
हिंदू ब्राह्मणवादी सोच से ग्रसित हैं, स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं पर मुस्लिम औरतों के साथ जो होता है वो उनका धर्म है। हिंदू दलितों का दमन करते हैं पर मुसलमानों में अशरफ़ अजलफ़ो पे फूल बरसाते हैं।
तो पहला प्रश्न, हिंदू के ख़िलाफ़ जो अवधारणा बनाई जाती है, उसके पीछे कौन है?
साफ़ है जो हिंदू नहीं हैं वो ही हिंदुओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इस्लाम और ईसाई धर्म को मानने वाले सिर्फ़ एक भगवान पे विश्वास करते हैं। हिंदुओं की तरह असंख्य देवी देवताओं का उनके धर्म में कोई स्कोप नहीं है।
ईसाईयो और मुसलमानों का धर्म फैले हुए अभी २००० साल भी नहीं हुए हैं। पर ये दोनो धर्म विश्व के कोने कोने में फैले हुए हैं। उन्होंने तलवार के बल पे विश्व में क़ब्ज़ा किया और लोकल लोगों का धर्म प्रवर्तित करवाया। हिंदुओं ने कभी भी ज़मीन क़ब्ज़ा और लोगों के धर्म बदलने की कभी चाह नहीं की। जिसका जो मन हो, वो वैसा ही माने।
आज के परिवेश में भी देखें तो आप पाएँगे की मदरसों और नजीओ बाहर से करोर्डो रुपए पाते हैं और इनका काम भारत में ईसाईओं और मुसलमानों की संख्या बढ़ाना ही है। इसके लिए ये बेहिसाब पैसा लूटाते हैं और प्रेस हो या यूनिवर्सिटी, राजनेता हों या क़ानून के सिपाही, सभी इनको पहुँच से दूर नहीं हैं।
अब आप लखीमपुर खेरी और श्रीनगर की घटनाओं पर ही नज़र डालें। सारे राजनेता कहाँ जा रहे हैं। स्वयं मुक़दमा क़ानून किसके ख़िलाफ़ दायर कर रहा है। अखबारवाले किसके बारे में लिख रहे हैं। इंडीयन इक्स्प्रेस की मानें तो श्रीनगर में हिंदू नहीं बल्कि वहाँ के अल्पसंख्यक मारे गए हैं। अल्पसंख्यक सुनते ही आप सोचते है बेचारे मुस्लिम मारे गए। कोई कहता हैं की ३७० नियम हटा के आपने क्या तीर मार लिया । हालत वहीं हैं।
ऐसे में ये बात सोचने पे मजबूर होना पड़ता है की आख़िर देश की जनता भाजपा से कब तक मंत्र मुग्ध रहेगी। कब उसे लगेगा की उनकी रक्षा के लिए भाजपा मुस्तैद है।
फ़िलहाल इस बात की पूरी कोशिश हो रही है की हिंदुओं का मोदी सरकार से विश्वास उठ जाए। कश्मीर हो या बंगाल, केरला हो या पंजाब, पूरी क़वायद ये है की लोगों को ये लगे की हालत अब भाजपा से नहीं संभलने वाले हैं।
ऐसा नहीं है की भाजपा इससे अनभिज्ञ है। उन्हें मालूम है कि उनको ख़राब दिखाए जाने की कोशिश हो रही है। आज हिंदुओं को लगता है की भाजपा ने उन्हें बंगाल या किसानों या सीऐऐ के मसलों पर निराश किया है।
जहां तक सीऐऐ का मसला है, भाजपा को लगता है उनका लक्ष्य जो भारत को विश्व में चमकाने का है, वो लक्ष्य बिखर जाएगा अगर हिंदू और मुस्लिम जनता बंट गयी। पश्चमी देश अपने अपने स्तर पर भारत पे अपनी कांग्रिस हो या अख़बार के ज़रिए दबाव बनाते हैं। भारत- विरोधी शक्तियों के साथ मिल के वो जनता में उन्माद खड़ा करने में सक्षम है। इसलिए भाजपा कोई कठोर रुख़ उठाने से कतराती है।
किसानो के मसले पे भी भाजपा का यही रुख़ है। एक तो किसान चुनावों को प्रभावित करते हैं, ख़ासकर उत्तरी इलाक़ों में। दूसरे भाजपा की सोच ये है की मसले को इतना लटका दो की किसान आख़िर में तंग आकर अपनी ज़िद से हट जाएँ। ये तो खैर अब ज़ाहिर है की किसानों के आंदोलन का नए किसानों के क़ानून से कोई लेना देना नहीं है।
बंगाल तो खैर भाजपा के गले का काँटा बैंक फँसा पड़ा है। एक तो ममता सरकार बड़े बहुमत से जीत के आयी है। फिर उसे ना तो न्यायपालिका से डर है ना सेंटर से। वो एक प्रशनिक अधिकारी तक के ट्रान्स्फ़र के मामले पे भी मोदी सरकार से भिड़ने के लिए आमादा रहती है। भाजपा अपनी तरफ़ से क़ानून की डगर चलना चाहती है। वो नहीं चाहती है की वो ममता सरकार को बर्खास्त करे और न्यायपालिका उसे बहाल कर दे।
ऐसे में हिंदुओं और भाजपा को एक दूसरे का हाथ कस के पकड़ के रखना है। सिर्फ़ सोशल मीडिया पे ग़ुस्सा दिखाना काफ़ी नहीं है। हिंदुओं को अपना रोष सड़क पे भी दिखाना पड़ेगा। आज उतराखंड से १००० कारों का कोंग्रेससी क़ाफ़िला लखीमपुर खेरी की और रवाना हो चुका है। कम से कम आधा दर्जन विपक्ष के मुखमंत्री भी कूच कर चुके है। क्या भाजपा ने ऐसा कुछ राजस्थान या महाराष्ट्र में किया है। क्या श्रीनगर में हुई मौतों पे किसी ने उन परिवारों की सुध ली है।
पते की बात ये है ही की हिंदुओं के हाथ में सत्ता आने से विदेशी ताकते हिल गयी हैं। उन्हें मालूम है कि इस राह पे हिंदुओं का उदय होकर रहेगा। विश्व की एक बड़ी ताक़त पे उनका प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा। इसलिए उनकी पूरी कोशिश हिंदुओं और भाजपा के गठबंधन को तोड़ना है।
जहां तक भाजपा का सवाल है उन्हें अपने योग्य कार्यकर्ताओं को थोड़ी छूट देनी पड़ेगी। उनके पास सक्षम लोगों की कमी नहीं है। पर ये सभी हाई कमान के इशारे का इंतेज़ार करते रहते है। इस वजह से निष्क्रिय हैं। भाजपा को उनका भी साथ देना है जो उनकी लड़ाई सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया पे लड़ रहे हैं। आज ये योद्धा अपने पीछे भाजपा को खड़ा नहीं पाते हैं। इसलिए इनकी आवाज़ दब गयी है। हर कोई डरता हैं की कहीं विपक्ष की सरकारें अपनी पोलिस भेज के उन्हें ना दबोच लें। भाजपा को इन योद्धाओं को सशक्त करना है, ना की कमजोर।